मेले से किसी मुट्ठी मे बंद
लौट आए सिक्के की तरह,
या ताश के खेल में आख़िर तक,
नाकाम किसी इक्के की तरह,
एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो.
वहाँ जहाँ बस उड़ाने बात करती है,
उस वीरान मकान की तरह,
और जिसके कई लफ्ज़ उर्दू से लगते हो,
ऐसी किसी ज़बान की तरह.
एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो.
भरी बरसात मे सूखे रह गये
छत के उस कोने की तरह,
या बरसो चली k बंद घड़ी मे
आख़िर मे बजे पौने की तरह.
एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो.
एक मासूम कलम से टेढ़ी-मेडी
खीची किसी लकीर की तरह,
या किसी चबूतरे पे औंधे मुह लेटे
उस अधमरे फकीर की तरह
एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो.
आधे चाँद को सीने से लगाए
उंघते, उस आसमान की तरह !
और हां वो कभी कभी ठीक लिख लेता है,
ऐसी किसी पहचान की तरह
एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो.
वहां जहाँ तुम और मैं अक्सर बिछड़ जाते है
ऐसे किसी जहान की तरह,
और उम्मीद की ड्योढ़ी से अब तक झाकते
किसी दिल-ए-नादान की तरह
एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो.
क्या खूब लिखा... खैर रहने दो!
ReplyDeletehehe..dhanyawaad Sir! :)
DeleteBadiya sirji
ReplyDeleteThankyou rahega ji! :)
Deleteमेले से किसी मुट्ठी मे बंद..लौट आए सिक्के की तरह..waahh
ReplyDeleteLoved the analogy and the thought :)
Thank you! :)
DeleteWoh labjo ki kami se,
ReplyDeleteVyakt na hui ek ehsaas ki tarah..
Woh shabdon ki kami se,
Adhuri reh gayi kavita ki tarah..
एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो ||
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Cha Gye bhai.. ekdum badiya.. :)
Thanks bhai! Ab bahut si adhuri cheeze keh di jayengi! :D
DeleteJara si bachi khuchi ummid ki kaafi hoti hai bhai, khair kisi aur din, rehne do. Padhne k liye shukria! :)
ReplyDeleteवो रोज अपनी कल्पना में जिसे ढूढ़ा करता है
ReplyDeleteउस शायर के अरमान की तरह
एक ख्वाईश अधुरी रहने दो॥