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Showing posts from January, 2017

अधूरी रहने दो.

मेले से किसी  मुट्ठी मे बंद  लौट आए सिक्के की तरह, या ताश के खेल में आख़िर तक, नाकाम किसी इक्के की तरह, एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो. वहाँ जहाँ बस उड़ाने बात करती है, उस वीरान मकान की तरह, और जिसके कई लफ्ज़ उर्दू से लगते हो, ऐसी किसी ज़बान की तरह. एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो. भरी बरसात मे सूखे रह गये  छत के  उस कोने की तरह, या बरसो चली k बंद घड़ी मे  आख़िर मे बजे पौने की तरह. एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो. एक मासूम कलम से टेढ़ी-मेडी खीची किसी लकीर की तरह, या किसी चबूतरे पे औंधे मुह लेटे उस अधमरे फकीर की तरह एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो. आधे चाँद को सीने से लगाए  उंघते, उस आसमान की तरह ! और हां वो कभी कभी ठीक लिख लेता है, ऐसी किसी पहचान की तरह एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो. वहां जहाँ  तुम और मैं अक्सर बिछड़ जाते है ऐसे किसी जहान की तरह, और उम्मीद की ड्योढ़ी से अब तक झाकते किसी दिल-ए-नादान की तरह एक ख्वाहिश अधूरी रहने दो.