कई बार मैं आसमान की तरफ देखता हूँ
और कुछ नही सोचता,
कई बार मैं चाँद को सोचता हूँ
आखें बंद करके,
कई बार जब तुम्हे सोचता हूँ,
तो तुम्हे देखने लगता हूँ!
और जब देखता हूँ तुम्हे ,
तो सोचने लगता हूँ
कि देखा जाए तो
बहोत ज़्यादा फ़र्क नही है
देखने और सोचने मे,
देखने का तरीका है, जी बस!
कि जो देखते हैं , उसे सोच लेते हैं,
और जो सोचते हैं , उसे देख लेते हैं!
उतना ही सोच पाते हैं ,जितना देख पाते हैं
और उतना ही देख पाते हैं, जितना सोच पाते हैं!
बनाने वाले ने फिर
क्या सोच कर
आँख और अकल
अलग अलग बनाई होगी?
देखा जाए तो,
इतते बड़े आसमान के नीचे
इतनी बड़ी है दुनिया,
और कितना कम है
जो हम देख पाते हैं
या सोच पाते हैं
सोचता हूँ मैं कभी कभी,
के देखने और सोचने का
ये जो सिलसिला नही होता,
जो यकीन नही होता अपनी आखों पर इतना,
और अपने सोचने पे इतना गुमान नही होता ,
तो क्या कुछ और देख पता मैं,
तो क्या कुछ और सोच पाता मैं!
के फिर आसमान देख कर,
पता नही क्या सोचता?
और चाँद सोचने की,
कुछ और बात होती.
आप भी सोचिए,
आप भी देखिए सोच कर!
Maine Bhagvan se poocha ki, "soch ke dekhu, ya dekh ke sochu",
ReplyDeleteBhagvan ne kaha, "jo sochega, wo dekhega.. Aur jo dekhega, usi ko sochega.."
Jab bhi mai use dekhta hoon, sochta hu mann hee mann mei,
Aur jab bhi mai use sochta hoon, dekhta hu mann hee mann mei..
Bhai mast hai! :)
Thanks Buddy! :)
Deletebananae waale ne kya sochkar duniya banai hai..firhaal to dekhkar yahi soch rahe hain :P
ReplyDeletegood one Amit :)
Duniya dekhkar toh nahi lagta bahut soch kar banayai hogi.
Deletekhair, aane ka Shukria! :)
bhrantiman alankar ka sundar prayog
ReplyDeleteShukria!
DeleteKya khooob likha hai
ReplyDeleteThank you!
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