जब भी दिल का कहा सुना हमने ,
था मुनासिब कहाँ सुना हमने.
अजब से शौक पालता है ये दिल,
कत्ल भी शौक से किया हमने.
इसका किस्मत से दोस्ताना था,
अपना दुश्मन तो वो पुराना था,
इल्म बिल्कुल था हार जाने का,
फिर भी ये दाँव ले लिया हमने.
जिनको ताउम्र थे हम ढूंढुते रहे,
वो एक दफ़ा जो मिले गये भी तो क्या?
इसको तो उनसे भी कुछ शिकायत थी,
उनसे भी मुह फुला लिया हमने.
भोर आती थी मेरे दरवाजे,
बड़ी मायूष लौट जाती थी,
शाम हम जागते थे ये कहते,
या खुदा! बहुत सो लिया हमने.
था मुनासिब कहाँ सुना हमने.
अजब से शौक पालता है ये दिल,
कत्ल भी शौक से किया हमने.
इसका किस्मत से दोस्ताना था,
अपना दुश्मन तो वो पुराना था,
इल्म बिल्कुल था हार जाने का,
फिर भी ये दाँव ले लिया हमने.
जिनको ताउम्र थे हम ढूंढुते रहे,
वो एक दफ़ा जो मिले गये भी तो क्या?
इसको तो उनसे भी कुछ शिकायत थी,
उनसे भी मुह फुला लिया हमने.
भोर आती थी मेरे दरवाजे,
बड़ी मायूष लौट जाती थी,
शाम हम जागते थे ये कहते,
या खुदा! बहुत सो लिया हमने.
एक जंग थी मेरी मुझसे,
एक को तो हार जाना था,
अपना हम और क्या बुरा करते,
साहब ! इश्क़ कर लिया हमने.
बड़े सारे पड़ाव देख लिए,
तजुरबों की है फेहरिस्त बड़ी,
अब तो खुद मे समा ले ऐ मौला,
है बहुत जी लिया हमने.
जब भी दिल का कहा सुना हमने,
था मुनासिब कहाँ सुना हमने...
Its so close to my real life that it gets disturbing at the end
ReplyDeleteDeeply moving indeed !
and The last para sums up all..
From Love to salvation via disappointment...
u have portrayed the journey very well...
After all salvation is highest form of self destruction...
May we get there some day ....
Some day eh...
Ur comment adds some value to the poem! thanks for the read!:)
Deleteभोर आती थी मेरे दरवाजे,
ReplyDeleteबड़ी मायूष लौट जाती थी,
शाम हम जागते थे ये कहते,
या खुदा! बहुत सो लिया हमने.
अपना हम और क्या बुरा करते,
साहब ! इश्क़ कर लिया हमने.
Can't stop re-reading these lines again and again.
Love and idiocy goes hand in hand and your poem brings out the feeling just to the perfection.
Keep posting!
(I may use the above lines as my IM's status with/without giving credit!)
Thanks maini shaab! I m glad u could appreciate the theme. and as U have been there, done that ,who knows better than u!
DeleteAnd With credit or without credit, it will be an honour anyday! :)
mat puch ae kafir ki kya munasib tha
ReplyDeletewarna khuda se puch baithenge
Ki kya wo sab jo ab talak hua hai
Teri marzi thi ya meri galti
Mashaallah! Kayal ho agye sir jee!
DeleteNice man! Good one!
ReplyDeleteThe last two paras - brilliance!! Touching!