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अनायास!


एक ख़याल,
किसी टूटे पत्ते सा,
चल पड़ा है,
हवाओं के हिचकोलों संग,
गुलाटियाँ ख़ाता हुआ,
दिशाहीन !

बस खो जाने,
कई सारे गिरे पत्तों मे,
करके तय,
आदि से अंत का फासला,
देख जाने कितने मौसम,
लक्ष्यहीन!


 ज़मीं का ज़ोर है शायद,
शायद फ़िज़ा की साज़िश,
या फिर वक़्त का सितम
एक और पत्ता
टूटा है अभी, 
अनायास!


Comments

  1. waah kya baat hai,bahut hi khubsurat rachna hai

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  2. Bas dil ki baat, aaj shabdo me likh di aapne..waah mere sher..kya baat!

    ReplyDelete
  3. @avanti ,@ankeet ,@payal : bahot bahot dhanyawaad! :)

    ReplyDelete
  4. Beautiful portrait of our abstract thoughts ...
    Trying to catch the glance of the Un-catch-able and I felt something has broken inside me as well
    Now i can see them !!

    Awareness !!

    Most Commendable job !

    and the greatest altruism

    Hats off....

    ReplyDelete
  5. @chandan :Thats exactly what i wanted to convey! :) thnaks a lot for the read n such a gratifying comment.

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  6. beautiful.......

    amazing poetry.........

    anu

    ReplyDelete
  7. you write great...this was brilliant :)

    ReplyDelete

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एक बेतुकी कविता

कभी गौर किया है  पार्क मे खड़े उस लैंप पोस्ट पे , जो जलता रहता है , गुमनामी मे अनवरत, बेवजह! या  दौड़े हो कभी, दीवार की तरफ, बस देखने को एक नन्ही सी चीटी ! एक छोटे से बच्चे की तरह, बेपरवाह! या फिर कभी  लिखी है कोई कविता, जिसमे बस ख़याल बहते गये हो, नदी की तरह ! और नकार दिया हो जिसे जग ने  कह कर, बेतुकी . या कभी देखा है खुद को आईने मे, गौर से , उतार कर अहम के  सारे मुखौटे, और बड़बड़ाया  है कभी.. बेवकूफ़. गर नही है आपका जवाब, तो ऐसा करते है जनाब, एक  बेवजह साँस की ठोकर पर, लुढ़का देते हैं ज़िंदगी, और देखते हैं की वक़्त की ढलानों पर, कहाँ जाकर ठहेरती है ये, हो सकता है, इसे इसकी ज़मीं मिल जाए. किनारो से ज़रा टूट कर ही सही, और आपको मिल जाए शायद, सुकून... बेहिसाब!

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अठन्नीयाँ

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