कभी गौर किया है पार्क मे खड़े उस लैंप पोस्ट पे , जो जलता रहता है , गुमनामी मे अनवरत, बेवजह! या दौड़े हो कभी, दीवार की तरफ, बस देखने को एक नन्ही सी चीटी ! एक छोटे से बच्चे की तरह, बेपरवाह! या फिर कभी लिखी है कोई कविता, जिसमे बस ख़याल बहते गये हो, नदी की तरह ! और नकार दिया हो जिसे जग ने कह कर, बेतुकी . या कभी देखा है खुद को आईने मे, गौर से , उतार कर अहम के सारे मुखौटे, और बड़बड़ाया है कभी.. बेवकूफ़. गर नही है आपका जवाब, तो ऐसा करते है जनाब, एक बेवजह साँस की ठोकर पर, लुढ़का देते हैं ज़िंदगी, और देखते हैं की वक़्त की ढलानों पर, कहाँ जाकर ठहेरती है ये, हो सकता है, इसे इसकी ज़मीं मिल जाए. किनारो से ज़रा टूट कर ही सही, और आपको मिल जाए शायद, सुकून... बेहिसाब!
waah kya baat hai,bahut hi khubsurat rachna hai
ReplyDeleteBas dil ki baat, aaj shabdo me likh di aapne..waah mere sher..kya baat!
ReplyDeleteati uttam..
ReplyDelete@avanti ,@ankeet ,@payal : bahot bahot dhanyawaad! :)
ReplyDeleteBeautiful portrait of our abstract thoughts ...
ReplyDeleteTrying to catch the glance of the Un-catch-able and I felt something has broken inside me as well
Now i can see them !!
Awareness !!
Most Commendable job !
and the greatest altruism
Hats off....
@chandan :Thats exactly what i wanted to convey! :) thnaks a lot for the read n such a gratifying comment.
ReplyDeletebeautiful.......
ReplyDeleteamazing poetry.........
anu
@anu : Bahut bahut dhanyawad anu jee!
Deleteyou write great...this was brilliant :)
ReplyDeleteThank you so much, Saumya! :)
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