वो सड़क पार कर रही थी, मैं भी.
उसने सड़क का मुआयना किया,मैने भी!
वो तेज़ी से आगे बढ़ी, मैं भी.
वो सड़क के उस पार थी , मैं भी!
'मेडम' आवाज़ लगाई
एक ऑटो वाले ने,
वो मुड़ी और मै भी.
उसके बैग से गिरी एक चीज़
कुचलती हुई निकल गयी एक कार.
और फिर ,और बड़े तिरस्कार से बड़बड़ाई
उसके बैग से गिरी एक चीज़
कुचलती हुई निकल गयी एक कार.
और फिर ,और बड़े तिरस्कार से बड़बड़ाई
ओह ! पेन.
उसे ज़रा भी अफ़सोस नही था,
और मुझे..
था ,बस इसी बात का.'
कि था एक जमाना के जब
पेन मे रीफिल बदली जाती थी,
और एहसास चिट्ठियों मे लिखे जाते थे!
लिखावट को तवज़्ज़ो देते थे लोग
प्रिंट आउट नही होता था तब.
खबरों केलिए
कल की अख़बार का इंतज़ार होता था
कल की अख़बार का इंतज़ार होता था
कॉँमेंट्री रेडियो पर भी सुनी जाती थी
और सचिन ओपन करने आता था
इश्क़ बस फ़िल्मो मे होता था
असल ज़िंदगी मे तो बस चक्कर.
आवारगी भी खूब होता थी
और पिटाई भी होती थी जमकर.
तब फ़िल्मो मे हीरो दौड़ते दौड़ते
बड़े हो जाते थे.
और आज़ ..
सड़क पार करते-करते
सड़क पार करते-करते
मैने खुद को बड़ा होते देखा !
Mast bhai!! Maja aa gaya padh ke.. 90s mei leke gaye kuch der ke liye :)
ReplyDeleteThanks for the read buddy.
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