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दुआ

एक अजनबी शहर की किसी वीरान स्टेशन पर,
बड़े विशाल छत के नीचे बैठा,
एक सूक्ष्म इंसान,
जो उस अंजानेपन को मिटने में लगा हो,
जिसे आती जाती निगाहों ने,
खीच दी है उसकी
ललाट पर।
और इतने मे,
कोई धीरे धीरे आकर लग जाता है
प्लेटफार्म पे
बिना शोर किये,
और पल भर में,
आती हुई किसी हॉर्न की आवाज पर
साइड दे देता है
 आने वाली  local ट्रेन को,


ट्रेन क दरवाजे की धक्का मुक्की में,
वो सूक्ष्म होने वाला एहसास कहीं
प्लेटफार्म पर ही दौड़ता रह जाता है ,
ट्रेन की गेट पर पर खड़े,
अजीब चेहरों की परछाइयों मे
हाथ बटुआ टटोल लेता है
और ठंडी हवा जिस्म,
और इमारतों की खिड़कियों से
घूरती रौशनी के दरम्यान,
अगले स्टेशन पर,
पड़ोस में खड़ा सुकून
उतर जाता है कंधे पर धक्का देकर,
earphone पर पीकू वाला 'बेजबान' गाना
रात की तरह ढलता चला जाता है|

पर वो अभी भी साथ है।
पर वो है कौन?
जिस्म ?
तो आखे क्यों नहीं फारकती उसकी,
उसने हाथ क्यों नहीं बढ़ाया अब तक।
रूह?
होती क्या है वो?
न देखी  कभी,न महसूस किया कभी.
खुदा?
उसकी तरह निराकार तो है,
पर मगर मुझे लगता है वो ,
उस बिलखते बच्चे को चुप करने गया होगा,
जिसकी अम्मा उसे तकिये क पास अकेला बिठाकर 
दूध गरम करने को माचिस ढूंढ रही होगी।

तो ये कौन है जो साथ चल रहा मेरे,
कौन है जो यू ही चलने लगता है संग संग ,
नाम भी नहीं बताता अपना.
मुझे लगता है कोई दुआ है उसकी,
आते वक़्त नाराज़ थी जरा मुझसे ,
बेरुखी से बस 'take care' कहा था उसने !!

Comments

  1. दुआओं की बेहतर प्रस्तुति!
    माँ की दुआओं के अतिरिक्त और किस दुआ में इतनी ताकत है I

    घर से निकला तो साथ थी दुआ,
    आगे बढ़ा तो साथ थी दुआ,
    ठोकर लगी गिर पड़ा तो साथ थी दुआ,
    बंद कमरे में जी भर कर रोया...
    तोह चीख पड़ा..
    किसकी है ये बद्दुआ!!
    उसके बाद भी संभलकर खड़ा हो गया;
    तब समझ में आया,
    हाँ सच में साथ है दुआ,
    मेरी माँ की दुआ


























    दुआओं की बेहतर प्रस्तुति!
    माँ की दुआओं के अतिरिक्त और किस दुआ में इतनी ताकत है |

    घर से निकला तो साथ थी दुआ,
    आगे बढ़ा तो साथ थी दुआ,
    ठोकर लगी गिर पड़ा तो साथ थी दुआ,
    बंद कमरे में जी भर कर रोया...
    तोह चीख पड़ा..
    किसकी है ये बद्दुआ!!
    उसके बाद भी संभलकर खड़ा हो गया;
    तब समझ में आया,
    हाँ सच में साथ है दुआ,
    मेरी माँ की दुआ |

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  2. दुआओं की बेहतर प्रस्तुति!
    माँ की दुआओं के अतिरिक्त और किस दुआ में इतनी ताकत है I

    घर से निकला तो साथ थी दुआ,
    आगे बढ़ा तो साथ थी दुआ,
    ठोकर लगी गिर पड़ा तो साथ थी दुआ,
    बंद कमरे में जी भर कर रोया...
    तोह चीख पड़ा..
    किसकी है ये बद्दुआ!!
    उसके बाद भी संभलकर खड़ा हो गया;
    तब समझ में आया,
    हाँ सच में साथ है दुआ,
    मेरी माँ की दुआ


























    दुआओं की बेहतर प्रस्तुति!
    माँ की दुआओं के अतिरिक्त और किस दुआ में इतनी ताकत है |

    घर से निकला तो साथ थी दुआ,
    आगे बढ़ा तो साथ थी दुआ,
    ठोकर लगी गिर पड़ा तो साथ थी दुआ,
    बंद कमरे में जी भर कर रोया...
    तोह चीख पड़ा..
    किसकी है ये बद्दुआ!!
    उसके बाद भी संभलकर खड़ा हो गया;
    तब समझ में आया,
    हाँ सच में साथ है दुआ,
    मेरी माँ की दुआ |

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  3. शायद हम खुद ही हैं अपने से निकल के खुद के करीब चल रहे हैं ... दुआ की तरह ...

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    Replies
    1. Sambhav hai. Naya perspective hai, sir. Thanks for the read. :)

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