एक बात बताउ ,शाब!
वो उस सड़क को छोड़ कर,
तीसरी गली हैं ना साहब!
तीसरी गली हैं ना साहब!
जो दोनो सिरे से खुलती है,
उसमे चंद कदमो पर,
एक बड़ी उँची सी इमारत है यादों की.
और उसके ठीक सामने एक उंघता सा,
एक कमरे का मकान,
जिसके आगे एक अकल का कुत्ता बिठा रखा है.
जो हांफता रहता है,
घूमता रहता है,
दरवाजे के इर्द गिर्द,
और चौकश हो जाता है
वो ज़रा सी भी आहट पर,
अगली या पिछली गली में.
खुद को शेर समझता है, साहब!
दरअसल बड़ी हिफ़ाज़त से रखा है
कमरे को,
कागज के चंद टुकड़ो पे बिखरे,
कुछ गीले मोती,
और फर्श पर अशरफियों से बिखरे,
कुछ अहम के टुकड़े.
कोने मे औंधे मूह पडा
एक जोड़ी जूता,
जिसपे आज भी किसी खूबसूरत राह ही मिट्टी लगी है,
ज्यों की त्यों.
और बिस्तर पे करवट लेकर लेटी रहती है,
कुछ घंटों की आधी-आधी नींद.
और साहब !मेमशाब खड़ी रहती है,
उन खिड़की की सलाखों के पीछे.
घंटों तकती हुईं
सामने वाली इमारत की छत पर,
चहलकदमी सी करती किसी परछाई की ओर.
उसे खाँसते सुना है कभी - कभी मैने,
और कभी - कभी अकल वाला कुत्ता भी
बस देख लेता है उसे नज़रे उठा कर .
मालूम साहब!
आज भी रोशन आसमान देखकर,
मना किया था मुझे चराग़ जलाने से,
कहा था काफ़ी है उन्हे इतनी रोशनी.
बस उन्हे चाँद नही दिखता ना साहब!
सामने वाली इमारत ज़रा ज़्यादा उँची है.
पर मैं तो "ख़याल" हूँ ना साहब,
"रूह" का सेवक.
मुझे मना किया है ज़िंदगी के ज़िक्र से भी.
पर शाब आप तो अजनबी हो ना,
जो कभी "तमन्ना" दिख जाए कहीं,
तो उसे ये रास्ता बता देना शाब.
बड़ी मेहेरबानी होगी !
खूबसूरत ख्याल ओर उसका वार्तालाप ...
ReplyDeleteमस्त लिखा है ... दिल के आर-पार होता हुआ ...
बहुत बहुत शुक्रिया दिगम्बर साहब ! :)
Deleteशुदध, अनूठे आँखों में बहते हुए ख्याल !!बहुत ख़ूब !!
ReplyDeleteits always a pleasure to read your blog!!
धन्यवाद! :)
Deleteइस कविता के भाव, लय और अर्थ काफ़ी पसंद आए। बिल्कुल नए अंदाज़ में आपने एक भावपूरित रचना लिखी है।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय साहब !
Deleteपर मैं तो "ख़याल" हूँ ना साहब,
ReplyDelete"रूह" का सेवक.
bahut khub bahut khub bahut khub ...lucky kumar ....
rooh e khyaal hi toh hai kafir
tu ghabbra kyun gaya
woh us mod pe na sahi baat johti khadi
agli mod pe hum bhi kuch mooh yun hi mod lenge.
bahut bahut dhanyawaad! :)
Deletewaah janab!
ReplyDeletepoore Marksist tewar!!
lagta hai jaise "Gajaanan Madhav 'Muktibodh'" ko padh rahi hu
achha laga,
kuchh baat to hai....
Bahot bahot dhanyawaad. Din bana diya aapne. :))
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