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फरियाद




मैने ये तो कभी नही चाहा ,
कि  फलक से तोड़ कर ,
अपनी टेबल पर सज़ा लूँ चाँद,
या फिर मेरी घर की किसी दीवार पर,
चमगादड़ के मानिंद लटका रहे,
कोई इंद्रधनुष !

रात का इंतज़ार भी,
बखूबी किए लेता हूँ,
टेबल पर सर रखकर उंघते हुए,
और ये भी जानता हूँ
के कुदरत की Drawing class भी,
रोज़-रोज़  नही लगती.


बेशक़ , कि हर खूबसूरत चीज़,
 हमारी ही हो जाए,
ऐसा तो हमने कभी नही माँगा.
हाँ!बस ये गुज़ारिश है अपनी,
के बित्तो से मापने हैं फ़ासले हमको.
उम्मीदों से  कहीं दूर ना निकल जाना !

हालाकी ! सुना है चाँद तो बहरा है,
क्या सुनेगा वो फरियाद मेरी ?
मैने भी कभी कान नही देखे उसके.
और , इंद्रधनुष भी शायद ही पढ़ पाता होगा!
अब एक तू ही है  जो  बचा सकती है,
इस नज़्म को बेकार  जाने से.

Comments

  1. bahut khoobsurat chand se bhi jyada :)

    chamgadad aur indradhanush ka prayog bahut khoobsurat hai ....

    and kudrat ka drawing class ... Awesome symbolism

    थोडा वक़्त दो थोड़ी और चोटें करो
    कल्पना की
    उतर आएगा चाँद भी ,
    नहीं तो खाबों की शक्ल भी क्या कम रूमानी है ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. Bahut bahut shukriya! :)
      Aakiri chaar lines jo aapne likh di, meri puri poem feeki ho gayi shaab!

      Delete
    2. are nahi aisi koi baat nahi :)

      Delete
  2. agar itne dinon baad kuch padho aur wo itna awesome ho to mazaa aa jaata hai :)

    ReplyDelete

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