यहीं कहीं रखी थी ,
वो माचिस की डिबिया,
खिड़की से उठा कर,
के जाने कब कुछ पथ भ्रष्ट बूंदे,
इसकी हस्ती के साथ खिलवाड़ कर बैठें.
बिल्कुल, इंसानों से जुदा हैं ज़रा,
ये बर्बाद होकर नम नही होती,
नम होकर बर्बाद हो जाती हैं!
बहुत तो नही,
पर चंद तीलियाँ रही होंगी,
यूँ ही पड़ी होंगी,
जल जाने की फिराक़ में,
पर अब ये शायद नही होगा,
हालाकी किसी को फ़र्क़ भी नही पड़ता,
और किसे फ़र्क़ पड़ जाए,
तो हमें फ़र्क़ पड़ता है?
हाँ ! कभी कभी लगता है,
कि, जो हमारी कोशिशें सही पड़ती,
तो रोशन करने वाली इन तीलियों के हिस्से,
गुमनामी के अंधेरे नही आते,
मुक़्क़मल हो जाती शायद इनकी भी ज़िंदगी.
ऐ उपरवाले ! जो गर देख रहा है तू ,
कही हमें देख कर भी तुझे,
ऐसा ही तो नही लगता.
Bhai Realistic ,Majestic and Awe-somatic.!!
ReplyDeleteSidhe Sabdo mein kahu to Behtareen aur Umda Rachna!! after Ghalib and Gulzar Now its Kishore for me and i am looking forward for more from your pen!!
Gaurav shaab ! bahoot bahot sukriya itti ijjat bakhsne ke liye! Jin logon ke saath aapne hamara naam likh dia hai, aabhari rahenge aapke aajanm! :)
Deleteये बर्बाद होकर नम नही होती,
ReplyDeleteनम होकर बर्बाद हो जाती हैं!
वाह ॥ कितनी गहन और सटीक बात ..... लोग बर्बाद हो कर नाम होते हैं ... आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए ।
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
Bahot bahot shanyawaad hausala afzai ke liye!
DeleteJee haan! word verification hata diya ha! thannks!
बहुत सुन्दर अमित.....
ReplyDeleteसंयोग की बात है कि कल ही मैंने भी एक रचना में नम तीलियों का ज़िक्र किया...अभी पोस्ट नहीं की है...
:-)
बहुत अच्छी कविता....
thanks for visiting my blog.
bless u
anu
Bahot bahot sukriya! :)
DeleteAwesome man !
ReplyDeleteऐसी ही कुछ तीलियाँ सहेज रखीं हैं, मैंने भी
मन के पार कल्पना की पर्दों की ओट में
बदलते मिजाज के साथ बर्बाद हुईं हैं वो
शायद नमीं कुछ ज्यादा हैं मन के किसी कोने में
या फिर बीतता वक़्त भी तो वजह हो सकता है .....
Gurudev! aap jo likhte hain ,danga kara dete hain! lajawaab! Waqt aa gaya hai aap hindi poetry me bhi utariye! Padhne ke liye sukriya! :)
Deleteतीलियों के बहाने उम्दा चिंतन!
ReplyDeleteखूबसूरत उपमा!
आशीष
--
इन लव विद.......डैथ!!!
Bahot bahot sukriya Yahan kuch pal bitane ke liye! Aapne toh apne blog pe kamaal kar hi rakha hai!
Deleteman you have again started writing and I never knew this...you should have told...thank god I accidently dropped here...ohk now coming to the point...kya likha hai..hats off....I hope teer nishane par laga hoga :) :)
ReplyDeleteAnjani sadko pe koi pehchana mile toh Roz ki hello hi se jyada maza aata hai! Khair..bahot bahot sukriya aane ke liye aur sarahne ke liye bhi! AB toh rasta bhi dekh liya..aate rahiye! :)
DeleteThe way you have made so seemingly trifling matchsticks so much more. Brilliant.
ReplyDeleteये बर्बाद होकर नम नही होती,
नम होकर बर्बाद हो जाती हैं!
Such pensive lines can be written only by a virtuoso.
ऐ उपरवाले ! जो गर देख रहा है तू ,
कही हमें देख कर भी तुझे,
ऐसा ही तो नही लगता.
Chills ran down my spine when I read these lines. I'll pray tonight!
This composition of yours is awesome, fantastic.
Kya baat Director Sahab! :)
Thanks a lot ,Mr. Bombastic Maini ! :P
ReplyDeleteबहुत तो नही,
ReplyDeleteपर चंद तीलियाँ रही होंगी,
यूँ ही पड़ी होंगी,
......बहुत सुन्दर कृति!...बधाई
कमाल है!
ReplyDeleteचुन-चुन कर शब्दों का आपने प्रयोग किया और क्या सुंदर संदेश देती रचना है यह!!
लाजवाब!!!
Sanjay shahab! Bhaot bahot sukriya! :)
Deletekahin syahi mein aansu toh nahi beh rahen
ReplyDeletekahin roshni chita toh nahi ban rahi
tu bhi shayar hai ae kafir
rooh teri bhi cheenhi gayi hai azeem!
bahut khub amit!
Bahot khoob sir! aur mere bolg samay dene ke liye sukriya! :)
Delete