Skip to main content

तीलियाँ





यहीं कहीं रखी थी ,
वो माचिस की डिबिया,
खिड़की से उठा कर,
के जाने कब कुछ पथ भ्रष्‍ट बूंदे,
इसकी हस्ती के साथ खिलवाड़ कर बैठें.
बिल्कुल, इंसानों से जुदा हैं ज़रा,
ये बर्बाद होकर नम नही होती,
नम होकर बर्बाद हो जाती हैं!

बहुत तो नही,
पर चंद तीलियाँ रही होंगी,
यूँ ही पड़ी होंगी,
जल जाने की फिराक़ में,
पर अब ये शायद नही होगा,
हालाकी किसी को फ़र्क़ भी नही पड़ता,
और किसे फ़र्क़ पड़ जाए, 
तो हमें फ़र्क़ पड़ता है?


हाँ ! कभी कभी लगता है,
कि, जो हमारी कोशिशें सही पड़ती,
तो रोशन करने वाली इन तीलियों के हिस्से,
गुमनामी के अंधेरे नही आते,
मुक़्क़मल हो जाती शायद इनकी भी ज़िंदगी.
ऐ उपरवाले ! जो गर देख रहा है तू ,
कही हमें देख कर भी तुझे,
ऐसा ही तो नही लगता.




Comments

  1. Bhai Realistic ,Majestic and Awe-somatic.!!
    Sidhe Sabdo mein kahu to Behtareen aur Umda Rachna!! after Ghalib and Gulzar Now its Kishore for me and i am looking forward for more from your pen!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Gaurav shaab ! bahoot bahot sukriya itti ijjat bakhsne ke liye! Jin logon ke saath aapne hamara naam likh dia hai, aabhari rahenge aapke aajanm! :)

      Delete
  2. ये बर्बाद होकर नम नही होती,
    नम होकर बर्बाद हो जाती हैं!

    वाह ॥ कितनी गहन और सटीक बात ..... लोग बर्बाद हो कर नाम होते हैं ... आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए ।



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

    ReplyDelete
    Replies
    1. Bahot bahot shanyawaad hausala afzai ke liye!

      Jee haan! word verification hata diya ha! thannks!

      Delete
  3. बहुत सुन्दर अमित.....
    संयोग की बात है कि कल ही मैंने भी एक रचना में नम तीलियों का ज़िक्र किया...अभी पोस्ट नहीं की है...
    :-)
    बहुत अच्छी कविता....
    thanks for visiting my blog.
    bless u

    anu

    ReplyDelete
  4. Awesome man !

    ऐसी ही कुछ तीलियाँ सहेज रखीं हैं, मैंने भी
    मन के पार कल्पना की पर्दों की ओट में

    बदलते मिजाज के साथ बर्बाद हुईं हैं वो
    शायद नमीं कुछ ज्यादा हैं मन के किसी कोने में


    या फिर बीतता वक़्त भी तो वजह हो सकता है .....

    ReplyDelete
    Replies
    1. Gurudev! aap jo likhte hain ,danga kara dete hain! lajawaab! Waqt aa gaya hai aap hindi poetry me bhi utariye! Padhne ke liye sukriya! :)

      Delete
  5. तीलियों के बहाने उम्दा चिंतन!
    खूबसूरत उपमा!
    आशीष
    --
    इन लव विद.......डैथ!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Bahot bahot sukriya Yahan kuch pal bitane ke liye! Aapne toh apne blog pe kamaal kar hi rakha hai!

      Delete
  6. man you have again started writing and I never knew this...you should have told...thank god I accidently dropped here...ohk now coming to the point...kya likha hai..hats off....I hope teer nishane par laga hoga :) :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. Anjani sadko pe koi pehchana mile toh Roz ki hello hi se jyada maza aata hai! Khair..bahot bahot sukriya aane ke liye aur sarahne ke liye bhi! AB toh rasta bhi dekh liya..aate rahiye! :)

      Delete
  7. The way you have made so seemingly trifling matchsticks so much more. Brilliant.

    ये बर्बाद होकर नम नही होती,
    नम होकर बर्बाद हो जाती हैं!

    Such pensive lines can be written only by a virtuoso.

    ऐ उपरवाले ! जो गर देख रहा है तू ,
    कही हमें देख कर भी तुझे,
    ऐसा ही तो नही लगता.

    Chills ran down my spine when I read these lines. I'll pray tonight!

    This composition of yours is awesome, fantastic.

    Kya baat Director Sahab! :)

    ReplyDelete
  8. बहुत तो नही,
    पर चंद तीलियाँ रही होंगी,
    यूँ ही पड़ी होंगी,
    ......बहुत सुन्दर कृति!...बधाई

    ReplyDelete
  9. कमाल है!
    चुन-चुन कर शब्दों का आपने प्रयोग किया और क्या सुंदर संदेश देती रचना है यह!!
    लाजवाब!!!

    ReplyDelete
  10. kahin syahi mein aansu toh nahi beh rahen
    kahin roshni chita toh nahi ban rahi
    tu bhi shayar hai ae kafir
    rooh teri bhi cheenhi gayi hai azeem!

    bahut khub amit!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Bahot khoob sir! aur mere bolg samay dene ke liye sukriya! :)

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

एक बेतुकी कविता

कभी गौर किया है  पार्क मे खड़े उस लैंप पोस्ट पे , जो जलता रहता है , गुमनामी मे अनवरत, बेवजह! या  दौड़े हो कभी, दीवार की तरफ, बस देखने को एक नन्ही सी चीटी ! एक छोटे से बच्चे की तरह, बेपरवाह! या फिर कभी  लिखी है कोई कविता, जिसमे बस ख़याल बहते गये हो, नदी की तरह ! और नकार दिया हो जिसे जग ने  कह कर, बेतुकी . या कभी देखा है खुद को आईने मे, गौर से , उतार कर अहम के  सारे मुखौटे, और बड़बड़ाया  है कभी.. बेवकूफ़. गर नही है आपका जवाब, तो ऐसा करते है जनाब, एक  बेवजह साँस की ठोकर पर, लुढ़का देते हैं ज़िंदगी, और देखते हैं की वक़्त की ढलानों पर, कहाँ जाकर ठहेरती है ये, हो सकता है, इसे इसकी ज़मीं मिल जाए. किनारो से ज़रा टूट कर ही सही, और आपको मिल जाए शायद, सुकून... बेहिसाब!

बदलाव

Patratu Thermal Power Station तुम्हारा ख़याल है  ,कुछ भी तोह नहीं बदला वहीँ तोह खड़ा है वो सहतूत का पेड़ उन खट्टी शामों को शाखों  पे सजाये ये रहा चापाकल के पास इंसानों का जत्था कोक  से आज भी प्यास नहीं बुझती ना ! आज भी दिखाई देता है सड़क से  मेरे घर की  खिड़की का पल्ला बाहे फैलाए ये सड़क आज भी मिल जाती है उसी मैदान से पहली बार जहाँ घुटने  छिले थे मेरे ! कुछ तोह बदला है लेकिन झुक गया है जरा सा  सहतूत का पेड़, शायद उम्र की बोझे के तले! चापाकल  से  आखे अब  ऐसे देखती हैं , जैसे अजनबी हूँ इस राह क लिए! घुन बसते  हैं  खिड़की क पल्लों में आजकल पीपल की जड़े  भी तोह घुसपैठ कर रही है दीवारों से! क़दमों को भी गुमान होता है अपनी ताकत पर ठोकरों से भी  टूटने लगी है ये सड़क भी किनारों से! दिल कहता है फिर सब पहले सा  क्यों नहीं है? मैं कहता हूँ ,बेटे! सबकुछ वहीँ है बस  वही नहीं है!

बीमार कुत्ता

वो बीमार कुत्ता  जो दरवाजे के पास, गोल गोल चक्कर लगाता था,  शून्य के इर्द-गिर्द! गिर जाता था, फिर होश संभाल कर, घूमने लगता था, उसे जाना नही था कहीं, बस यूँ  ही काट देनी थी, अपनी बची खुची ज़िन्दगी। आज किसी भीड़ मे जब , एक ख्वाब से, हाथ छुड़ा कर घर आया, तो बड़ी देर तक जेहन में,  वो कुत्ता, गोल गोल घूमता रहा ।