ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
पैरो से हमारे टकरा जाती कोई अजनबी लहर,
और आसमान मे हौले से चाँद निकल आता!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता !
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
अक्सर हमारे चाय की प्यालियाँ ट्रे मे टकरा जाया करती
और मेरे अख़बार के चंद पन्ने उसकी हाथो मे होते!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता !
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
उसकी आखों से छलक पड़ते दो आह्लाद क आँसू,
मेरी जेब से निकले चंद सिक्के अनमोल हो जाते!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता!
पैरो से हमारे टकरा जाती कोई अजनबी लहर,
और आसमान मे हौले से चाँद निकल आता!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता !
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
अक्सर हमारे चाय की प्यालियाँ ट्रे मे टकरा जाया करती
और मेरे अख़बार के चंद पन्ने उसकी हाथो मे होते!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता !
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
उसकी आखों से छलक पड़ते दो आह्लाद क आँसू,
मेरी जेब से निकले चंद सिक्के अनमोल हो जाते!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
तेरे इम्तिहान मे हमारे लिए सवाल एक से होते,
और मैं उसकी नकल करके पास हो जाता!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
उसकी दुआओं मे कहीं हमारा भी नाम होता
और शायद, मेरे पास माँगने को कुछ भी नही..
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता!!
तेरे इम्तिहान मे हमारे लिए सवाल एक से होते,
और मैं उसकी नकल करके पास हो जाता!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता!
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
उसकी दुआओं मे कहीं हमारा भी नाम होता
और शायद, मेरे पास माँगने को कुछ भी नही..
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता!!
Touching & intriguing! but didnt get the connection! :|
ReplyDeleteLoved itt Amit..!!:)
ReplyDeleteतेरे इम्तिहान मे हमारे लिए सवाल एक से होते,
और मैं उसकी नकल करके पास हो जाता!
Above line is Soo true...!!
Keep up the gud work..:)
@kishu..abe bhai it was dedicated to u, i never said its ur story. Thanx btw.
ReplyDelete@mishra...thanx man..cusat me chaar saal padhne k baad paas hone k alawa kuch nahi sujhta.
ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर,
ReplyDeleteअक्सर हमारे चाय की प्यालियाँ ट्रे मे टकरा जाया करती
और मेरे अख़बार के चंद पन्ने उसकी हाथो मे होते!
very sweet.....bohot khoobsurat nazm hai....awesome
i somehow thought i'd already commented on this one though.....chhaddo :)
@saanjh...thank u so much...n yess feel free to comment any number of tyms, though it was just d frst one. :)
ReplyDeleteपहले सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
ReplyDeletebahut bahut shukriya sanjay shaab! Aaplog padhte hain toh likhne me maja aata hai! :)
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