आज फिर कोई टकरा गया मुझसे,
फिर अपना नाम गम बता गया
गर यकीं कर लूं उसका
तोःकल जो मिला था ,
इसी सड़क पर ,
वो कौन था?
शक्ल से तोः बेहतर था जरा ,
खुशियों का कोई सगा रहा होगा|
पर हर दफा वही धोका कैसे खा जाता हूँ..
बहरूपिये वक़्त को पहचान नहीं पाता हूँ..
नजरो की खता है ना
न कसूर मेरा है..
नजरिया है..
बदलता रहता है.....
maazi hi toh hai
ReplyDeletejo kabhi mere aks mein
mujhe RAVAN dikhata hai
maazi hi toh hai jo kabhi mere aks mein mujhe RAM dikhata hai
Subhanallah sir ! Gajab! :)
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