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सुकून


इक सुबह इरादा किया,
आज ज़रा सुकूं ढूँढ ही लेते हैं!
अक्सर बस झलक दे जाता है.
आज पता ही पूछ लेते हैं!

वो रुख अख्तियार कर चले
जिस ओर कम लोग बढ़ रहे थे
इक धुंधली तस्वीर थी हर किसी के पास,
जैसे बरसो पड़ी अलमारी से आज ही निकला हो!!


हुजूम बढ़ता रहा,
दिन ढलता रहा,
रात के रखवाले ड्यूटी पर आ गए थे !
पाँव फैलाए हम तरु की जड़ में पड़ गए थे !

हँवा सखियों संग ज्यो ही खिल्किलाती सी गुज्ररी,
किसी ने कंधे पर किसी ने हाँथ फेर दिया,
चौक कर मुड़कर पूछ "कौन भाई शाब?"
उफ़ जा चुके थे वो, फिर पता नहीं पूछ पाया !

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