एक बूँद थी मैं,
नन्ही सी,मासूम सी ;
अनंत जलराशि में ;
कहीं कुछ तलाशती सी;
लहर संग लहराती ;
पवन संग इठलाती;
किनारों को हौले से छू;
पल में गुम हो जाती;
अम्बर के विस्तार को ;
अचंभित नैनो से ताकती;
कल्पना के पंख लगाए;
उन्मुक्त फलक में विचरती;
किन्तु,कब इल्म था मुझे..
वक़्त दरिय सा बह रहा था;
तमन्ना और सच का;
अजीब सा मिलन हो रह था;
अब आसमान मेर बसेर था;
ऐसा प्रतीत हुआ जैसे,
ये के नया सवेरा था.
पर आज मैं आसमां के अंक से;
जब भी झाकती हूँ ;
ना वो किनारा दिखता है ना लहर ;
ना वो मंजर दिखता ही,ना वो सहर;
बस अरमानों संग खिलखिलाता पल नज़र आता है;
वक़्त के परतों के बीच दबा कल नज़र आता है;
किन्तु मुझे अस्तित्व और याद
दोनों को सहेजना होगा..
अलविदा दोस्तों क्योंकि;
अब क्षितिज की ओर चलना होगा~
See Here or Here
ReplyDeletelovely !!
ReplyDeletem speechless !!