वक़्त था जब ये जहाँ हमारा था
अब तो सांस भी मांग कर लिया करते हैं
वक़्त था जब इतराते थे अपने साये को देख कर भी
अब तो आईने से भी मुह छुपा के चलते हैं
वक़्त था जब मंजिलो तक पहुचने का हौसला था
अब तो ठोकरों से ही टूट जाया करते हैं
वक़्त था बेपरवाह ख्वाबो में जिया करते थे
अब हकीकत से भी हम हँस के मिला करते हैं
दरअसल उम्र बन जाते हैं कुछ लम्हे
तजुर्बा बन जाते हैं कुछ फैसले
बाजुए अब कर्म नही करना चाहती
ये अब चेहरा छुपाने के काम आती हैं
आहिस्ता आहिस्ता ही सही भ्रम टूट जाता है
जिंदगी अपनी औकात पे आजाती है
बस पहली कुछ दफा बाद दर्द होता है
फिरजनाब आदत सी हो जाती है...
वक़्त था जब ये जहाँ हमारा था
ReplyDeleteअब तो सांस भी मांग कर लिया करते हैं.....loved it ...u express thots very nicely...keep writing..