दुनिया देखता हूँ तो , जान पाता हूँ बिखर गयी है कुदरत भी ठीक मेरी तरह ! अकेला नहीं हूँ मैं ! कटोरे में पड़ा था अब तलक वो चुल्लू भर पानी फर्श पर बिखरा पड़ा है ! पर सिमट रहा है वो ! लौटती लहरों पे खड़ा हूँ , जमी न बचा पाऊं शायद , कुछ रेत बचा ही सकता हूँ, अपने पैरो तले!