वो बीमार कुत्ता जो दरवाजे के पास, गोल गोल चक्कर लगाता था, शून्य के इर्द-गिर्द! गिर जाता था, फिर होश संभाल कर, घूमने लगता था, उसे जाना नही था कहीं, बस यूँ ही काट देनी थी, अपनी बची खुची ज़िन्दगी। आज किसी भीड़ मे जब , एक ख्वाब से, हाथ छुड़ा कर घर आया, तो बड़ी देर तक जेहन में, वो कुत्ता, गोल गोल घूमता रहा ।