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Showing posts from April, 2012

ज़िंदगी झंड

एक भेड़ चाल ज़िंदगी, एक भीड़ मे फँसी हुई, ना  जानता    कोई हमें, ना  हमको  जानना तुम्हे, ना बैर भाव है कोई, ना ही कोई संबंध है, ज़िंदगी ये झंड है, फिर भी बड़ा घमंड है. एक छोटी सी घड़ी मेरी, सोने कहाँ देती कभी, जो Snooze करके हम पड़े, जागा तो बोला..ओह तेरी! फिर सोचा अपना boss भी , कहाँ वक़्त का पाबंद है, ज़िंदगी ये झंड है, फिर भी बड़ा घमंड है. जो जैसे तैसे बस मिली,. हर सिग्नल पे रूकती चली, होता तो हमको गम अगर, जो बस की अगली सीट पर, बैठी ना होती वो कुड़ी, जी आइटम प्रचंड है, ज़िंदगी ये झंड है, फिर भी बड़ा घमंड है. एक इंतज़ार मैं कटी, अपनी तो सारी ज़िंदगी, वो तीस दिन की salary, जो बीस दिन मे ही उड़ी, बचे जो दस हैं और दिन, क्रेडिट-कार्ड का प्रबंध है, ज़िंदगी ये झंड है, फिर भी बड़ा घमंड है. नारी से कुछ तो नाता है, अपनी समझ ना आता है, दिल लेके अपना हाथ मैं, ज्यों ही गये हम पास में, वो क्यों थी चीख सी पड़ी, तू चूतिया अखंड है, ज़िंदगी ये झंड है, फिर भी बड़ा घमंड है. बिल्कुल थी लाखों खावहिशे,