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Showing posts from February, 2012

मुनासिब ?

जब भी दिल का कहा सुना हमने , था मुनासिब कहाँ सुना हमने. अजब से शौक पालता है ये दिल, कत्ल भी शौक से किया हमने. इसका किस्मत से दोस्ताना था, अपना दुश्मन तो वो पुराना था, इल्म बिल्कुल था हार जाने का, फिर भी ये दाँव ले लिया हमने. जिनको ताउम्र थे हम ढूंढुते रहे, वो एक दफ़ा जो मिले गये भी तो क्या? इसको तो उनसे भी कुछ शिकायत थी, उनसे भी मुह फुला लिया हमने. भोर आती थी मेरे दरवाजे, बड़ी मायूष लौट जाती थी, शाम हम जागते थे ये कहते, या खुदा! बहुत सो लिया हमने. एक जंग थी मेरी मुझसे, एक को तो हार जाना था, अपना हम और क्या बुरा करते, साहब ! इश्क़ कर लिया हमने. बड़े सारे पड़ाव देख लिए, तजुरबों की है फेहरिस्त बड़ी, अब तो खुद मे समा ले ऐ मौला, है बहुत जी लिया हमने. जब भी दिल का कहा सुना हमने, था मुनासिब कहाँ सुना हमने...