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Showing posts from November, 2011

अनायास!

एक ख़याल, किसी टूटे पत्ते सा, चल पड़ा है, हवाओं के हिचकोलों संग, गुलाटियाँ ख़ाता हुआ, दिशाहीन ! बस खो जाने, कई सारे गिरे पत्तों मे, करके तय, आदि से अंत का फासला, देख जाने कितने मौसम, लक्ष्यहीन!  ज़मीं का ज़ोर है शायद, शायद फ़िज़ा की साज़िश, या फिर वक़्त का सितम एक और पत्ता टूटा है अभी,  अनायास!