किसी ने देखा होगा ख्वाब समुन्दरो का,आसमानो का, और समुंदर मे तैरते आसमान के अक्स का. समुंडरों ने देखा होगा बर्फ़ाब पहाड़ों का ख्वाब , सफेदी सी लिपटी बर्फ की चादरों का,और एक छोटीसी मनचली मछली का. उस मछली ने देखा होगा , ज़मीन का ख़्वाब. फिर किसी रेंगते ख्वाब ने कोई झुका हुआ सा ख्वाब, किसी सीधे खड़े ख्वाब ने कदमो का ! उस कदम ने अपने मे साथ चलते हमकदम का ख्वाब देखा होगा और फिर ... और फिर .. फिर दोनो ने मिलकर कई सारे ख्वाब. ख्वाब जैसे उँचा मकान , पहाड़ के उस पार जाती सड़क. किताबे, बस्तियाँ, शराब, महताब. और फिर, ख्वाबों का एक रेला चल पड़ा होगा, कुछ पहाड़ के इस पार रह गये होंगे, कुछ पहाड़ के उस पार. पर अब धीरे धीरे सब अलग अलग ख्वाब देखने लगे, कुछ दौलत का ख्वाब ,कुछ ताक़त का ख़्वाब. कुछ दर्द का ख्वाब , कुछ राहत का! कोई रोटी का, कोई शराब का, कुछ नीन्द के मारे देखने लग गये ख्वाब ख्वाब का. अब आसमान बादलों के ख्वाब देखने लगा था और पहाड़ बर्फ की चादरों के, जंगल पेड़ो के ख्वाब देखने लगे और कदम वीरानो के। और वो मछली..