बड़ी हसरत थी कि किसी की मद भरी आखों पे लिखूं, कुछ बूँदों सी कमसिन,पर बारिस सी हसीन बातों पे लिखूं, पर ये साली feeling कभी आती ही नहीं! अक्सर लोगों को सुना था इश्क़ मे शायर होते, हम मुकम्मल शायरी की खातिर आशिक़ी कर बैठे! लगनी तो खैर दोनो ही सूरत मे थी! और फिर एक दिन! कहत किशोर सुनहु मेरे भाई, दिल की झोपड़ी मे साली feeling सी आई, ठीक वैसे जैसे दातों के बीच कुछ रेशा सा फँस गया हो. आख़िरकार हमने भी गब्बर अंदाज़ मे उनसे हाथ माँग लिया, वो भी ठुकरा कर कह बैठे,अब तेरा क्या होगा कालिया? अपनी शोले भी रामू की आग बनकर रह गयी! तब से अब तक वो उस अंधेर झोपडे मे खामोश सी बैठी है, दाँतों मे अभी तलक़ कुछ फँसा हुआ है शायद.. अब ये feeling साली जाती ही नही.!